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Read this article in Hindi to learn about the various determinants of physical development in an individual.
Determinant # 1. मानव विकास विभिन्न अवस्थाओं के अन्तर्गत होता है (Human Development belongs to Different Stages):
मानव प्रारम्भ में बाल्यावस्था सम्बन्धी विकास लेकर चलता है । बाल्यावस्थाओं के भी अपने कुछ नियम हैं, जिनके अन्तर्गत प्रारम्भिक अवस्थाओं की निरन्तरता बनी रहती है ।
उपर्युका अवस्थाओं में मानव का विकास गर्भावस्था से प्रारम्भ होकर युवावस्था तक रहता है, तत्पश्चात् प्रौढ़ावस्था में स्थिरता बनी रहती है, एवं वृद्धावस्था मानव विकास की सबसे अन्तिम अवस्था होती है, इसमें विकास नहीं होता । इस प्रकार मानव अपनी विभिन्न अवस्थाओं से गुरजता हुआ आगे की ओर अग्रसर होता है ।
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Determinant # 2. विकास एक निश्चित कम के अन्तर्गत होता है (Development Process belongs to Certain Order):
मानसिक एवं शारीरिक विकास का क्रम एक निश्चित अवस्था के अन्तर्गत होता है ।
यह क्रम निम्न प्रकार का होता है:
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विकासवादी परिपेक्ष्य : व्यवहार के जैवकीय आधार (Development Approach : Biological Bases of Behaviour):
इसके अतिरिक्त प्रत्येक विकास चूंकि स्वयं की अवस्था के अनुरूप होता है, अत: एक अवस्था के पूर्ण हो जाने के पश्चात् अगले क्रम की अवस्था का विकास सम्भव हो सकता है । उदाहरणार्थ – बालक का पहले बैठना फिर खड़े होना तत्पश्चात् चलना एक क्रम के अन्तर्गत होता है ।
यह क्रम मानसिक विकास के परिप्रेक्ष्य में भी होता है, पहले बालक एक-दो अकार के शब्दों का उच्चारण करता है, तत्पश्चात् वह कुछ शब्दों का प्रयोग और अन्त में वाक्य संरचना करने लगता है ।
Determinant # 3. विकास प्रतिमानों में स्थिरता का गुण होता है (Development Patterns belongs to Stability):
विकास प्रतिमानों में स्थिरता से तात्पर्य उस अवस्था से है, जो प्राय: विकास के परिप्रेक्ष्य में देखी जाती हैं । यदि एक बालक की बुद्धि बाल्यावस्था से ही मन्द है, तो वे वयस्कावस्था तक सामान्यत: मन्द बुद्धि ही रहती है । इसी प्रकार किसी बालक की बुद्धि तीव्र है, तो वह युवावस्था व आगे तक तीव्र बुद्धि के रूप में बनी रहती है ।
इसी प्रकार विकास प्रतिमान बालक की लम्बाई में भी जुडे होते है । ऐसे विकास में सामान्यत: स्थिरता ही विद्यमान रहती है, तथापि कुछ प्रतिमान अपवाद भी हो सकते हैं । इसी प्रकार शारीरिक विकास प्रतिमानों की भांति बालक में मानसिक विकास सम्बन्धी प्रतिमान भी उपलब्ध रहते हैं ।
Determinant # 4. विभिन्न अवस्थाओं में विकास की गति निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है (Development Speed belongs to Continuing Process in Different Stages):
गर्भधारण से ही विकास का क्रम प्रारम्भ हो जाता है, जो जीवन के अन्त तक निरन्तर बना रहता है । यद्यपि विभिन्न अवस्थाओं में विकास की गति भी तीव्र एवं मन्द बनी रहती है । इसी प्रकार मानव के प्रत्येक अंग एवं उसकी मानसिक विकास सम्बन्धी गतिविधियों का क्रम बना रहता है ।
अनेक बार ऐसा प्रतीत होता है कि बालक में कोई गुण अचानक आ गया हो परन्तु वास्तविकता यह है, कि वह गुण उत्पन्ना होने से पूर्व एक विकास की प्रक्रिया निरन्तर बनी हुई थी ।
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उदाहरण के लिए, बालक की प्रारम्भिक अवस्था केवल रोने की व हँसने की बनी रहती है, अचानक वह कोई शब्द का उच्चारण करने लगता है । ऐसा उसकी निरन्तर गति बनी रहने के कारण ही होता है । इस प्रकार विकास आन्तरिक अवस्था में उतना स्पष्ट भले ही न हो पर वह निरन्तर होता रहता है ।
Determinant # 5. विकास के प्रतिमानों की भविष्यवाणी सम्भव (Prediction is Possible of Development Patterns):
विकास की अपनी कुछ निश्चित अवस्थाएँ होने के कारण उसके सम्बन्ध में भविष्यवाणी करना सम्भव है ।
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बालक का विकास दो अवस्थाओं में रहता है:
(a) शिर: पदाभिमुख दिशा की ओर
(b) सन्निकट दूरस्थ दिशा में ।
शिर: पदाभिमुख दिशा के अन्तर्गत शारीरिक विकास की दिशा सिर से पैर की ओर क्रम से होती है, अर्थात् सबसे पहले विकास सिर से प्रारम्भ होता है, फिर धड़ तथा अन्त में पैर के क्षेत्र में विकास होता है, जबकि सन्निकट दूरस्थ दिशा के अन्तर्गत शारीरिक विकास पहले सुषुम्ना नाड़ी के समीप से शुरू होता है ।
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उदाहरणार्थ – हाथ एवं भुजा के क्षेत्र में विकास पहले होता है, अँगुलियों के क्षेत्र में विकास बाद में होता है । इस प्रकार हम विकास की प्रत्येक अवस्था के आधार पर अन्य अवस्थाओं के विकास की भविष्यवाणी कर सकते हैं ।
Determinant # 6. विकास प्रतिमानों में वैयक्तिक भिन्नता का गुण होता है (Developmental Patterns belongs to Individual Difference):
वैयक्तिक भिन्नता के कारण भी विकास प्रतिमानों की अवस्थाओं में परिवर्तन होता है । उदाहरण के लिए कुछ बालकों में शारीरिक एवं मानसिक गति मन्द जबकि कुछ बालकों में गति तीव्र होती है । इस प्रकार की विभिन अवस्थाएँ बालकों की शारीरिक एवं मानसिक योग्यताओं पर भिन्न-भिन्न प्रभाव डालती हैं ।
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यही कारण है, कि एक ही आयु के दो बालकों का व्यवहार परस्पर भिन्न होता है । शारीरिक विकास के सन्दर्भ में बालकों के विकास में पायी जाने वाली वैयक्तिक भिन्नताएं वंशानुक्रम भोजन स्वास्थ्य तथा वातावरण की अन्य परिस्थितियों के कारण परिणामस्वरूप होती हैं । इसी प्रकार मानसिक विकास के क्षेत्र की विभिन्नताएं भी वंशानुक्रम तथा वातावरण के विभिन्न पहलुओं की भिन्नता के कारण होती हैं ।
Determinant # 7. सन्तुलन एवं असन्तुलन की अवस्थाओं में विकास के प्रतिमान (Developmental Patterns in Balanced and Unbalanced Stages):
विकास प्रतिमानों में सन्तुलन एवं असन्तुलन दोनों प्रकार की अवस्थाओं के गुण होते हैं । जिन विकास प्रतिमानों में सन्तुलन होता है, उनमें बालक अपना बेहतर ढंग से समायोजन कर लेता है, जबकि असन्तुलन की स्थिति में बालक असुरक्षा, अनिर्णय, दुर्व्यवहार व तनाव जैसी परिस्थितियों से ग्रस्त हो जाता है ।
बालक एवं बलिकाओं दोनों में सन्तुलन एवं असन्तुलन के पहलू कुछ भिन्न-भिन्न आयु स्तरों में पाये जाते है । यह इसलिए होता है, क्योंकि लड़के-लड़कियों की विकास दर भी भिन्न-भिन्न होती है ।
एक माह, ढाई माह, साढ़े तीन माह, साढ़े चार माह एवं साढ़े पाँच माह के आयु स्तर पर बालकों में असन्तुलन एवं दो वर्ष, तीन वर्ष, चार वर्ष एवं पाँच वर्ष के आयु स्तर पर बालकों में सन्तुलन पाया जाता है । इस प्रकार विकास के प्रतिमानों में भिन्नता का प्रभाव निश्चित होता है ।
Determinant # 8. विकास प्रतिमानों की गति विभिन्न अवस्थाओं में एक जैसी नहीं होती है (Developmental Pattern’s Speed is not same in Different Stages):
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शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों का विकास भिन भिन्न गति से होता है । सिर का विकास प्रारम्भिक अवस्था में सबसे तेज गति से होता है । किशोरावस्था में हाथ एवं पैरों का विकास लगभग पूर्ण हो जाता है । कन्धे एवं वक्ष का विकास किशोरावस्था से शुरू हो जाता है । इसी प्रकार मानसिक विकास की अवस्थाएँ भी अलग-अलग होती हैं ।
बाल्यावस्था में सृजनात्मक कल्पना का विकास तीव्र गति से होकर किशोरावस्था में चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाता है । इस तरह हम देखते हैं कि विकास की गति शरीर के विभिन्न अंगों में विभिन्न अवस्थाओं में अलग-अलग रहती है तथा इसी प्रकार मानसिक गति का विकास भी होता है ।
Determinant # 9. विकास के सामान्य से विशिष्ट की ओर जाने की क्षमता होती है (Development Process belongs General to Specific):
शारीरिक विकास में बालक पहले वस्तु पकड़ने के लिए सम्पूर्ण शरीर का उपयोग करता है, तत्पश्चात् वह पूर्ण परिपक्वता से पूरे हाथों के द्वारा वस्तु पकड़ना सीखता है, बाद में केवल अँगुलियों की सहायता से वस्तु को पकड़ने की क्षमता रखता है ।
मानसिक विकास की अवस्थाओं में प्रारम्भ मे संवेग विशिष्ट नहीं होते किन्तु जैसे-जैसे बालक विभिन्न परिस्थितियों में प्रवेश करता है, वैसे-वैसे वह विभित्र संवेगों का विशिष्ट की ओर प्रयोग करना सीख जाता है ।
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Determinant # 10. विकास अधिगम एवं परिपक्वता का परिणाम है (Development Learning belongs Maturity):
व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन उसकी मानसिक एवं शारीरिक परिपक्वता के कारण होता है । व्यक्ति के व्यवहार में होने वाले ये परिवर्तन अधिगम के फलस्वरूप होने वाले परिवर्तनों से भिन्न होते हैं, तथापि परिपक्व एवं अधिगम दोनों का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, क्योंकि परिपक्वता ही अधिगम के लिए नींव तैयार करता है ।
अधिगम के द्वारा बालक नई प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करता है । एक अध्ययन के दौरान ज्ञात हुआ कि गर्भकालीन अवस्था में जो शिशु अधिक क्रियाशील होते हैं, वे जन्म के बाद भी शारीरिक कौशलों को अन्य बालकों की अपेक्षा शीघ्रता से ग्रहण कर लेते हैं । अत: स्पष्ट है, कि बालक के विकास में परिपक्वता तथा अधिगम दोनों की भूमिका रहती है ।
Determinant # 11. विकास की प्रत्येक अवस्था के विशिष्ट गुण होते हैं (Development belongs to Specific Quality):
वैकासिक अवस्थाओं में प्रत्येक आयु स्तर की कुछ विशेषताएँ होती हैं, जो कि उस अवस्था के लिए तो सामान्य होती हैं, पर किसी अन्य अवस्था में उनकी उपस्थिति असामान्य मानी जाती है । उदाहरणार्थ: किशोरावस्था में विपरीत लिंग के बालकों में अधिक रुचि दिखती है, जबकि बाल्यावस्था में ऐसा नहीं होता ।
एक और उदाहरण से इस बात को समझा जा सकता है- तीन वर्ष के बालक में अत्यधिक नकारात्मक व्यवहार सामान्य है, जो आयु बुद्धि के साथ अपने आप कम हो जाता है, परन्तु अभिभावक इसे असामान्य समझकर चिन्तित हो जाते हैं, उसी प्रकार युवावस्था के विकास प्रतिमानों की विशेषता कामुकता होती है जो कि इस अवस्था के विशिष्ट गुण विकास के प्रतिमानों के अनुसार ही होते हैं ।
Determinant # 12. विकास के विभिन्न क्षेत्रों में सह-सम्बन्ध होता है (Development belongs to Correlation in Different Fields):
प्राय: देखा जाता है, कि उत्तम सामाजिक विकास के साथ-साथ नैतिक विकास भी उत्तम होता है । यह सह-सम्बन्ध के कारण ही होता है । शारीरिक एवं मानसिक क्षेत्रों में होने वाले विभिन्न विकास एक-दूसरे से अत्यधिक सह-संबन्धित होते हैं ।
जिन बालकों में क्रियात्मकता एवं सृजनात्मकता होती है, वह शारीरिक विकास अच्छा होने के कारण ही होती है । प्रसन्नचित रहने वाले बालकों की संवेगात्मक अभिव्यक्ति परिपक्व होती है ।
मानसिक विकास के क्षेत्रों में भी शारीरिक विकास के विभिन्न क्षेत्रों में सह-सम्बन्ध स्थापित होने के कारण व्यक्ति के मानसिक विकास की अवस्थाओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो कि सह-सम्बनगत्मक विकास की ओर अग्रसर करता है ।