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कवकों को सामान्य बोलचाल की भाषा में फफूँद कहा जाता है । हम अक्सर अपने घरों में भोजन, अचार, चमड़े की वस्तुओं पर इन्हें उगते हुए देखते हैं । बरसात के दिनों में कूड़े-करकट पर उगने वाली छातेनुमा रचना भी एक प्रकार का कवक है । कवक विशिष्ट प्रकार के सूक्ष्मजीव हैं । पहले इन्हें पौधे माना जाता था परन्तु अब इन्हें पौधों एवं जन्तुओं से अलग समूह में वर्गीकृत किया गया है ।
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संरचना:
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कवकों का शरीर भी थैलस ही होता है । कवकों में अनेक लम्बे-लम्बे धागे जैसी बेलनाकार रचनाएँ होती हैं । कवकों के तन्तु एक कोशिकीय या बहुकोशिकीय होते हैं । इनके कवक तन्तु आपस में उलझकर एक जाल जैसी रचना बनाते हैं । अधिकांश कवकों में सुविकसित केन्द्रक, माइटोकॉण्ड्रिया, राइबोसोम जैसे सभी कोशिकांग पाए जाते हैं ।
कवकों का आर्थिक महत्व:
अधिकांश कवक प्राकृतिक रूप से अत्यंत उपयोगी हैं । मिट्टी में उपस्थित कवक पौधों एवं जन्तुओं के मृत शरीर एवं बचे भागों को सड़ा-गलाकर खनिज में बदल देते हैं ।
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लाभदायक क्रियाएं:
1. जलेबी, खमण, डोसा आदि खाद्य पदार्थ बनाने में खमीर नामक कवक का उपयोग होता है ।
2. पेनीसिलीन, स्ट्रेप्टोमाइसीन जैसी औषधियाँ कवकों से निर्मित होती हैं ।
3. मशरूम ऐसे कवक है जिनके सब्जी के रूप में खाते हैं ।
4. अनेक कवकों से रंग निर्माण करते हैं ।
हानिकारक क्रियाएं:
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अनेक कवक पौधों, जन्तुओं एवं मनुष्यों में रोग फैलाने का कार्य करते हैं । आलू का वार्ट रोग, गेहूँ का गेरुआ रोग तथा मनुष्य के त्वचीय रोग (दाद, खुजली भी कवकों द्वारा होते हैं ।